इस पोस्ट में हम मानव श्वसन तंत्र के बारे में चर्चा करेंगे। यह आगामी रेलवे ग्रुप डी, ALP or SSC CGL परीक्षा के लिये भी उपयोगी है। प्रतियोगी परीक्षाओं में प्राय: इस विषय से प्रश्न पूछे जाते हैं। इसलिये इसे ध्यानपूर्वक पढ़ें।
श्वसन तंत्र
श्वसन तंत्र से तात्पर्य मानव एवं उसके पर्यावरण के मध्य ऑक्सीजन और कार्बन डाई ऑक्साइड के अंत:ग्रहण एवं विनिमय है।
फेफड़ें श्वसन तंत्र के प्रमुख अंग हैं, ये हमारे सांस लेते समय गैसों के विनिमय को सम्पन्न करते हैं।
गैसों के विनिमय में सहायक श्वसन तंत्र के दूसरे अंग – नासिका मार्ग, ग्रसनी, स्वर यंत्र, ट्रैकिया, ब्रोंकाई, ब्रौंकियोल्स व फेफड़ें आदि हैं।
नासिका मार्ग:
नासिका मार्ग नाक से वायु के प्रवाह के लिये रास्ता है और इसकी भीतरी गुहा म्यूकस परत से स्तरित होती है।
म्यूकस में असंख्य संख्या में कोशिका सदृश्य छोटे बाल होते हैं जो रेत के कणों, जीवाणुओं और अन्य दूसरे सूक्ष्म जंतुओं को शरीर में प्रवेश करने से रोकते हैं।
म्यूकस शरीर में प्रवेश करने वाली वायु को नम बनाकर उसे शरीर के तापमान के अनुकूल बना देती है।
ग्रसनी:
यह मांसल झिल्लीदार मार्ग नासा गुहा को स्वर यंत्र के साथ जोड़ता है और ओरल गुहा को इजोफैगस के साथ जोड़ता है। यह सांस लेने, भोजन के अंर्तग्रहण और बोलने में मदद करता है।
स्वर यंत्र:
श्वसन तंत्र का वह भाग जो ग्रसनी को ट्रैकिया से जोड़ता है, लैरिंक्स या स्वर यंत्र कहलाता है। इसका मुख्य कार्य ध्वनि उत्पादन है।
लैरिंक्स प्रवेश द्वार पर एक पतला, पत्ती समान कपाट होता है, जिसे इपीग्लॉटिस कहते हैं। जब हम कुछ निगलते हैं तो यह ग्लॉटिस बंद कर देता है, जिससे भोजन श्वास नली में प्रवेश नहीं कर पाता है।
ट्रैकिया:
यह वक्ष गुहा में प्रवेश करती है और दो ब्रोंकी दांया और बांया में विभाजित की जाती है।
दायां ब्रोंकी तीन शाखाओं में बंटकर दाहिने फेफड़े में प्रवेश करता है।
बांया ब्रोंकी सिर्फ दो शाखाओं में विभाजित होकर बायें फेफड़े में प्रवेश करता है।
फेफड़ा:
फेफड़ों का ढांचा स्पंज के आकार का है और इसका रंग लाल है।
वक्ष गुहा में दो फेफड़े होते हैं – दायां और बांया फेफड़ा।
प्रत्येक फेफड़ा एक झिल्ली से घिरा रहता है जिसे प्लूरल मेम्ब्रेन (प्लूरल झिल्ली) कहते हैं।
दायें फेफड़े का बायें फेफड़े की तुलना में आकार बड़ा होता है।
श्वसन की प्रक्रिया को चार भागों में बांटा जा सकता है:
बाह्य श्वसन
गैसों का परिवहन
आंतरिक श्वसन
कोशिकीय श्वसन
1. बाह्य श्वसन: इसे दो भागों में बांटा जा सकता है
(a) श्वासोच्छवास,
(b) गैसों का विनिमय
श्वासोच्छवास की क्रिया-विधि-
वायु को अंदर लेने और फेफड़ों द्वारा इसे बाहर निकालने की क्रिया को श्वासोच्छवास कहते हैं।
निश्वसन:
इस अवस्था में वायु वातावरण से वायु-पथ द्वारा फेफड़ें में प्रवेश करती है, जिससे वक्ष गुहा का आयतन बढ़ जाता है और फेफड़ों में एक निम्न दाब के केन्द्र का निर्माण होता है और वायु वातावरण से फेफड़ों में प्रवेश करती है। हवा का यह प्रवाह तब तक बना रहता है, जब तक वायु का दाब शरीर के भीतर और बाहर बराबर न हो जाए।
उच्छश्वसन: इस प्रक्रिया में वायु फेफड़ों से बाहर आती है।
गैसों का विनिमय:
गैसों का विनिमय फेफड़ों के अंदर होता है। गैसों का विनिमय प्रवणता संकेन्द्रता के आधार पर साधारण विसरण माध्यम से पूर्ण होता है।
ऑक्सीजन और कार्बन डाई ऑक्साइड मे विनिमय उनके आंशिक दवाब में अंतर के कारण होता है।
2. गैसों का परिवहन:
ऑक्सीजन का फेंफड़े से कोशिका की ओर परिवहन एवं कार्बन डाई ऑक्साइड का फेंफड़े से कोशिका की ओर परिवहन की प्रक्रिया को गैसों का परिवहन कहते हैं।
गैसों का परिवहन रक्त के माध्यम से होता है।
(i) प्लाजमा के साथ घुलकर: कार्बन डाई ऑक्साइड प्लाजमा के साथ घुलकर कार्बोनिक अम्ल बनाती है। इस रूप में 7% कार्बन डाई ऑक्साइड का परिवहन होता है।
(ii) बाई कार्बोनेट के रूप में – कार्बन डाई ऑक्साइड की 70% भाग का परिवहन इस रूप में होता है। यह रक्त में उपस्थित पोटैशियम और सोडियम के साथ घुलकर पोटैशियम बाईकार्बोनेट और सेाडियम बाईकार्बोनेट बनाती है।
3. आंतरिक श्वसन
शरीर के भीतर, रक्त और ऊत्तक द्रव्य के मध्य होने वाले गैसीय विनिमय को आंतरिक श्वसन कहते हैं।
4. कोशिकीय श्वसन : ग्लूकोज के ऑक्सीकरण की प्रक्रिया को कोशिकीय श्वसन कहते हैं।
श्वसन के प्रकार: श्वसन दो प्रकार का होता है, जैसे अनॉक्सी श्वसन और ऑक्सी श्वसन
1. अनॉक्सी श्वसन:
जब भोजन का ऑक्सीकरण ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है, तो इसे अनॉक्सी श्वसन कहते हैं।
इसके दौरान ग्लूकोज के एक अणु से 2 एटीपी अणु बनते हैं।
अनॉक्सी श्वसन का अंतिम उत्पाद जंतु ऊत्तक जैसे मांसपेशी कोशिकाओं में लैक्टिक अम्ल है।
जब हम अधिक व्यायाम कर लेते हैं तो लैटिक्ट अम्ल के कारण मांसपेशियों में दर्द होता है।
2. ऑक्सी श्वसन:
- जब भोजन का ऑक्सीकरण ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है, तो इसे ऑक्सी श्वसवन कहते हैं।
0 comments:
Post a Comment